उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा कानून असंवैधानिक, संविधान की धारा 25 और 26 का उल्लंघन : सूर्यकांत धस्माना

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देहरादून 8 अक्टूबर। उत्तराखंड में हाल ही में पारित उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा अधिनियम को लेकर राजनीतिक विवाद तेज हो गया है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (संगठन) सूर्यकांत धस्माना ने इस कानून को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि यह अधिनियम भारतीय संविधान की धारा 25 और 26 का खुला उल्लंघन करता है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि इस कानून को न्यायालय में चुनौती दी गई तो राज्य सरकार को इस पर “मुंह की खानी पड़ेगी।”

प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में पत्रकारों से बातचीत में धस्माना ने कहा कि धामी सरकार ने यह कानून केवल धार्मिक ध्रुवीकरण के एजेंडे के तहत बनाया है। इसका शिक्षा की गुणवत्ता या अल्पसंख्यक समुदायों की शिक्षा में सुधार से कोई लेना-देना नहीं है।

उन्होंने कहा कि राज्य में सिख, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के स्कूल पहले से ही सरकार के शिक्षा विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) लेकर और सोसायटी रजिस्ट्रेशन कानून के तहत विधिवत संचालित हो रहे हैं। इन संस्थानों को यह स्वतंत्रता है कि वे अपनी सुविधानुसार सीबीएसई, आईसीएसई या अंतरराष्ट्रीय बोर्ड से संबद्धता लें। ऐसे में राज्य सरकार किसी भी अल्पसंख्यक संस्थान को उत्तराखंड बोर्ड से संबद्धता लेने के लिए बाध्य नहीं कर सकती।

धस्माना ने आरोप लगाया कि सरकार की मंशा शिक्षा सुधार नहीं, बल्कि मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के मदरसों को निशाना बनाकर धार्मिक ध्रुवीकरण करना है। उन्होंने कहा कि मदरसों के पंजीकरण और संचालन के लिए पहले से ही नियम मौजूद हैं, और यदि कोई संस्था उनका पालन नहीं करती तो उसकी जिम्मेदारी राज्य मदरसा बोर्ड की होती है — न कि सभी मदरसों को दोषी ठहराने की।

उन्होंने स्पष्ट किया कि संविधान की धारा 25 हर नागरिक को अपने धर्म का पालन, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता देती है, जबकि धारा 26 प्रत्येक धार्मिक समूह को अपने धार्मिक मामलों और संस्थानों के प्रबंधन की स्वायत्तता प्रदान करती है। धस्माना के अनुसार, राज्य सरकार का यह नया कानून इन दोनों संवैधानिक अधिकारों का सीधा अतिक्रमण करता है।

अंत में उन्होंने कहा, “कांग्रेस पार्टी इस कानून को अनावश्यक और असंवैधानिक मानती है तथा सरकार से इसे तत्काल वापस लेने की मांग करती है।”

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