प्लास्टिक प्रदूषण और पराली जलाने की चुनौती का अभिनव समाधान, किसानों की आय भी बढ़ेगी
रुड़की 4 अक्टू
बर । ईआईटी रुड़की ने एक अनूठा नवाचार कर प्लास्टिक प्रदूषण और पराली जलाने जैसी गंभीर चुनौतियों का समाधान पेश किया है। संस्थान की इनोपैप लैब ने पैरासन मशीनरी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, औरंगाबाद के सहयोग से गेहूँ के भूसे से जैव-अवक्रमणीय, कम्पोस्टेबल और खाद्य-सुरक्षित टेबलवेयर विकसित किया है।
यह तकनीक “मिट्टी से मिट्टी तक” के दर्शन को मूर्त रूप देती है। यानी उत्पाद धरती से पैदा होता है और उपयोग के बाद पुनः धरती में मिलकर पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करता।
कृषि अवशेष को संपदा में बदलने की दिशा में कदम
भारत में हर साल लगभग 35 करोड़ टन कृषि अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसका बड़ा हिस्सा जला दिया जाता है। आईआईटी रुड़की की यह तकनीक न केवल इस हानिकारक पराली जलाने की समस्या का हल है, बल्कि किसानों को अतिरिक्त आय का स्रोत भी प्रदान करेगी।
शोधकर्ताओं का कहना
परियोजना का नेतृत्व कर रहे कागज़ प्रौद्योगिकी विभाग के प्रो. विभोर के. रस्तोगी ने कहा,
> “यह शोध दर्शाता है कि रोज़मर्रा के कृषि अवशेषों को उच्च-गुणवत्ता वाले, पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों में बदला जा सकता है। यह विज्ञान और इंजीनियरिंग की क्षमता का उदाहरण है जो सुरक्षित और आर्थिक रूप से व्यवहार्य समाधान प्रस्तुत करता है।”
आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. कमल किशोर पंत ने इसे स्वच्छ भारत मिशन और मेक इन इंडिया जैसे अभियानों को मजबूती देने वाला कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह नवाचार प्रयोगशाला से समाज तक पहुँचने वाले अनुसंधान का बेहतरीन उदाहरण है।
युवा शोधकर्ताओं की अहम भूमिका
इस परियोजना में पीएचडी छात्रा जैस्मीन कौर और पोस्ट-डॉक्टरल शोधकर्ता डॉ. राहुल रंजन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने इसे इस बात का उदाहरण बताया कि युवा शोधकर्ता स्थायी भविष्य के निर्माण में अहम योगदान दे सकते हैं।
वैश्विक लक्ष्यों के अनुरूप
यह पहल संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) — खासकर SDG 12 (जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन) और SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) — के अनुरूप है।
आईआईटी रुड़की का यह प्रयास साबित करता है कि अनुसंधान केवल प्रयोगशाला तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कृषि, उद्योग और समाज को एक साथ लाभान्वित करते हुए एक स्वच्छ, स्वस्थ और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में योगदान दे सकता है।
