जिस घर में माँ होती है वो घर होता है स्वर्ग के समान।

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माँ तेरी सूरत के सामने भगवान की सूरत क्या होगी?

चम्पावत। 11 मई माँ ईश्वर की ऐसी कृति है, उसका कोई विकल्प ही नहीं है। “माँ” शब्द के पीछे ऐसा विराट संसार छुपा हुआ है की उसके प्यार व दुलार में ना कोई कपट होता है ना ही कोई शर्त। उसकी गोद का सहारा मिलने पर बच्चे को ऐसा सुरक्षा कवच मिलता है की वह थोड़ी ही देर में माँ के प्यार में खो जाता है। हालाकि माँ को याद करने जे लिए वैश्विक स्तर पर “मदर्स- डे” मनाया जाता है लेकिन भारत में जो लोग मानते है की माता – पिता के क़र्ज़ से कभी उरण नहीं हुआ जा सकता, ऐसे परिवारों में तो 365 दिन ही “मदर्स-डे “ होता है। वह परिवार वर्षभर माँ के आँचल की छाया में रहते हुए अपना जीवन धन्य करते है। वही संस्कार विहीन लोगो के कारण आज भारत जैसे देश में जो माता-पिता अपने बच्चो के लिए अपना जीवन न्यौचवार कर देते है,वही माता-पिता बेटे की शादी करने के बाद दुश्मन बन जाते है। जिसपर चिंतन और मनन किया जाना चाहिए।

परिवार को बांधने की शक्ति तो ईश्वर ने माँ को ही दी है।
चम्पावत। हिमवीरों को अपने बच्चो की तरह प्यार

और दुलार बांट कर उन्हें उनके सामाजिक व राष्ट्रीय कर्तव्यों की डोर में बाँधती आ रही आईटीबीपी के हिमवीर वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन “हव्वा” की चीफ पैटरॉन अनुराधा सिंह कहती है कि दुनिया में माँ का ही ऐसा विराट हृदय होता है कि उसके रहस्य को बिना “माँ” बने नहीं जाना जा सकता है। जिसकी, बच्चे की भूख मिटने से उसकी स्वतः भूख मिट जाती हो वही “माँ” होती है।

जिस घर में “माँ” होती वह घर स्वर्ग के समान होता है।
चम्पावत। स्वस्थ सामाजिक संस्कारों में पाली एवं आज एक बेटी की माँ बनी नेहा भट्ट कहती है की “माँ” का आँचल ही पूरे परिवार को बांधे रखता है। यदि महिला सोलह संस्कारों व विचारो को अपने जीवन में लेकर चलती है तो उसका घर ही बद्रीनाथ बन जाता है। जहाँ वह परिवार के सभी लोगो में अपने अपने माता-पिता का ही दर्शन करने लगती है।

“माँ” की ममता की गहराइयों का नहीं है कोई अंत।
चम्पावत। देवीधुरा की गऊ सेवक तुलसी बिष्ट कहती है की “माँ” में छुए प्यार, दुलार,ममता, वात्सल्य आदि गहराइया अनंत होती है। संस्कारों में पाली बेटिया इतनी भाग्यशाली होती है की वह संसार में लाने वाली “माँ” एवं उसके बाद सांसारिक जीवन में प्रवेश करने पर वहाँ मिलने वाली “सासू माँ” दोनों का स्नेह पाकर उनकी सेवा करते हुए अपने को “कुलदीप” बना देती है।

दूसरी की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी तलाशती है दिया गुर्रानी।
चम्पावत। रीठासाहिब क्षेत्र की दिया गुर्रानी में ईश्वर ने ऐसा मातृत्व भाव भरा है की वह दूसरों की ख़ुशी में अपनी खुशिया तलाशती है। वह कहती है की नारी भोग विकास की वस्तु नहीं है, उसका हर रूप हमारी रक्षा व सुरक्षा करता है। यदि जन्म देने वाली “माँ” व जीवन को संवारने वाली “सासू माँ” की सेवा व सानिध्य मिले तो दुनिया की खुशियाँ उस घर में आ जाती है।

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