नैनीताल 25 जुलाई। कभी आप मुनस्यारी या धारचुला की ओर जाए, तो रास्ते मे थल कस्बे से पिथौरागढ़ वाले मार्ग पर लगभग 6 किलोमीटर दूर बल्तिर गांव में एक ऐसा देवालय है, जहां कभी पूजा नहीं की जाती। इसे ‘एक हथिया देवाल’ कहते हैं। गांव की कच्ची सड़क से 50 मीटर दूर यह छोटा सा मंदिर बेहद खुबसूरत है, जो एक विशाल शिला को काट कर बनाया गया है।
इस देवालय के बारे मे किवदंती है कि गांव में एक मूर्तिकार रहता था जो पत्थरों को काट-काट कर सूदंर मूर्तियां बनाया करता था। एक बार किसी दुर्घटना में उसका एक हाथ खराब हो गया, लेकिन फिर भी उसने मूर्ति तराशने का कार्य बंद नहीं किया। वह एक हाथ से ही मूर्तियां गढ़ने लगा। गांव वाले उसे उलाहना दिया करते थे कि वह एक हाथ से कुछ नहीं कर सकता। ऐसी बातें सुन सुनकर उसका मन बहुत खिन्न हो गया है। उसने प्रण किया कि वह अब इस गांव में नहीं रहेगा।
एक रात वह अपनी छैनी, हथौड़ा और अन्य औजारों को लेकर गांव के दक्षिणी छोर की ओर निकल गया। गांव का दक्षिण छोर प्रायः गांववालों के शौच के उपयोग में आता था। वहां पर एक विशाल शिला थी। कहते है अगले दिन जब गांववाले शौच आदि के लिए उस जगह पहुंचे तो उन्होंने देखा कि किसी ने रात भर में शिला को काटकर एक देवालय का रुप दे दिया है। सारे गांववाले इस अदभुत मंदिर को देखने उमड़ पड़े। सभी वहां पहुंचे पर वह कारीगर वहां नजर नहीं आया। लोगों ने उसे बहुत ढूंढा पर वह कभी नहीं मिला। सभी समझ गए कि यह मंदिर उसी एक हाथ वाले कारीगर ने बनाया है। इसीलिए इसे एक हथिया देवाल कहा जाता है। हालांकि यह अतिशयोक्ति ही है कि एक व्यक्ति एक हाथ से और एक रात में शिला को काटकर एक देवालय का रुप दे दे।
पर इस तरह के गल्पों से जिज्ञासा तो बढ़ती ही है। सच जो भी हो पर इस देवालय की कलात्मकताबहुत प्रभावित करती है तथा उस कारीगर के प्रति सम्मान व श्रृद्वा भी उमड़ती है, जिसने एक हाथ से यह कृति बना डाली।
जब स्थानीय पंडितों ने उस देवालय के भीतर उकेरे गए शिवलिंग को देखा तो पता चला कि कारीगर ने शीघ्रता व अज्ञानताके कारण लिंग का अरधा विपरीत दिशा यानी दक्षिण दिशा मे बनाया है, जिसकी पूजा फलदायी नहीं होगी। तब से इस मंदिर में पूजा अर्चना नहीं की जाती है। पास ही बने नौले में लोग मुडंन आदि संस्कार के समय बच्चांे को स्नान अवश्य कराते हैं।
देवालय की कलात्मकता और स्थापत्यकला नागर और लैटिन शैली की है। चट्टान को काट कर ही संपूर्ण मंदिर और शिव लिंग को बनाया गया है। मंदिर के मंडप की ऊंचाई 1.85 मीटर और चौड़ाई 3.15 मीटर है। इस बेजोड़ देवालय को शिल्पी ने ऐसे गढ़ा है कि यह पश्चिम और दक्षिण दिशा की तरपफ खुला हुआ है। पूर्व व उतर दिशा से शिला में गड़न की गई है। मंडप के सामने जल प्रणाली बनाई गई है और ठीक नीचे एक छोटा जल कुंड भी निर्मित है। इस देवालय के विषय में बहुत कम लोगों को जानकारी है। इसके प्रचार प्रसार की जरुरत है सरकार को इसे अपने संरक्षण में लेना चाहिए ।
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