देहरादून 21 जुलाई।
उत्तराखंड में जबरन धर्मांतरण के मामलों में बीते ढाई वर्षों में चौंकाने वाली बढ़ोतरी हुई है। 2020 से 2022 तक जहां केवल 11 मामले दर्ज हुए, वहीं 2023 से जुलाई 2025 तक के ढाई साल में यह संख्या बढ़कर 42 हो गई यानी चार गुना से भी अधिक। यह स्थिति अपने आप में राज्य की कानून व्यवस्था और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के प्रशासन की नाकामी को उजागर करती है यह कहना है उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी का।
दसौनी ने सोमवार को प्रदेश मुख्यालय में पत्रकारों के समक्ष यह बात कही।
दसौनी ने कहा कि मुख्य विपक्षी दल होने के नाते हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि जब राज्य सरकार की नाक के नीचे धर्मांतरण के मामले चार गुना तक बढ़ जाते हैं, तो यह इस बात का संकेत है कि अपराधियों और कट्टरपंथी ताकतों को न आपकी सरकार का डर है और न ही आपके कानूनों का।
गरिमा ने कहा कि यह आंकड़े इस बात का सबूत हैं कि “कड़ा कानून” लाने के बावजूद सरकार उसे लागू करने में पूरी तरह असफल रही है।
दसौनी के अनुसार देहरादून जैसे संवेदनशील जिलों में 18 से अधिक मामले दर्ज होना यह दर्शाता है कि यह सिर्फ कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि प्रशासनिक ढीलेपन और राजनीतिक संरक्षण का भी मामला है।
गरिमा ने कटाक्ष करते हुए कहा कि जब आपकी सरकार ही धर्मांतरण रोकने में असहाय दिख रही हो, तब जनता को यह जानने का हक है कि क्या कानून सिर्फ दिखावे के लिए बनाए गए थे?
क्या सरकार की पूरी मशीनरी इन मामलों पर आंख मूंदे बैठी है? क्या यह सरकार अपराधियों को “फ्री पास” दे रही है ।
गरिमा ने जोर देते हुए कहा कि उत्तराखंड की जनता यह जानना चाहती है कि जब आप हर मंच से मात्र सांप्रदायिक बातें करते हैं, तो वास्तव में आपके शासन में धर्मांतरण जैसे गंभीर अपराध कैसे बेलगाम हो गए हैं? क्या यह आंकड़े आपका शासन और उसका इकबाल बताने के लिए काफी नहीं है ।
